कानपुर
कानपुर-बुंदेलखंड की छह सीटों पर नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, जिसमें कुछ प्रत्याशियों के नाम खारिज हो चुके हैं। वहीं, कुछ प्रत्याशियों ने नाम वापस ले लिए हैं। कानपुर-बुंदेलखंड में एक नया ट्रेंड देखने को मिला है। बीजेपी प्रत्याशी अपने नामांकन के साथ ही अपनी पत्नियों को भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतार रहे हैं। जानकारों का मानना है कि यह एक चुनावी रणनीति का हिस्सा है। यदि कोई आपात स्थिति आती है, तो उनकी पत्नियां सहारा बनकर नैया पार घाट लगाएंगी।

कानपुर की अकबरपुर लोकसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी देवेंद्र सिंह भोले की पत्नी प्रेमशीला ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा दाखिल किया था। वहीं, इटावा लोकसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी डॉ. रामशंकर कठेरिया की पत्नी मृदुला कठेरिया ने भी निर्दलीय नामांकन किया था। जानकारी के मुताबिक मृदुला कठेरिया का पर्चा खारिज हो गया है। इसके साथ ही कन्नौज लोकसभा सीट से सपा मुखिया अखिलेश यादव के उतरने के बाद बीजेपी प्रत्याशी सुब्रत पाठक ने अपनी पत्नी नेहा पाठक का निर्दलीय नामांकन कराया था।

पत्नियों के सहारे प्रत्याशी!
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि किसी कारणवश प्रत्याशी का पर्चा खारिज हो गया, तो पत्नी उनकी जगह चुनाव लड़ेंगी। इनकी पत्नियां डमी कैंडिडेट के रूप में चुनाव मैदान में रहेंगी। चुनाव में मिलने वाले संसाधनों जैसे प्रचार वाहन की अनुमति, जुलूस, वाहनों की संख्या इत्यादि की परमीशन का इस्तेमाल अपने चुनाव में कर सकते हैं। कानपुर-बुंदेलखंड में पति के खिलाफ पत्नियों के चुनावी मैदान में उतरने की चर्चा हर जुबान पर है।

कई नामांकन खारिज
कन्नौज लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी राजेश चौहान की पत्नी राधा चौहान ने भी निर्दलीय नामांकन दाखिल किया है। कानपुर-बुंदेलखंड की छह सीटों पर लगभग 110 प्रत्याशियों ने नामांकन कराया था। इसमें कई प्रत्याशियों के नामांकन खारिज हो गए हैं। वहीं, कुछ प्रत्याशियों ने अपना नाम वापस भी ले लिया है। जानकारों का मानना है कि पांचवें, छठे फेज के चुनाव में यह ट्रेंड देखने को मिल सकता है।

Source : Agency