नई दिल्ली
ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी के नाम से जानी जाती है। इसे अचला एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकियह अपार सिद्धिदायक होती है। इस एकादशी का व्रत करने से कभी मनुष्य के पुण्य कर्मो में कमी नहीं आती। वह अपार धन दौलत का स्वामी बनता है। अपरा एकादशी 6 जून 2021 रविवार को आ रही है। इस एकादशी के दिन खरबूजा या ककड़ी का नैवेद्य भगवान विष्णु को लगाकर उसी का फलाहार किया जाता है। धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण ने बताया किजो व्यक्ति पूर्ण समर्पण भाव से इस एकादशी का व्रत रखता है, उसके पापों का क्षय होता है, लेकिन एक बार यदि पापों का क्षय हो गया तो दोबारा कोई पाप जीवन में नहीं करना चाहिए। इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग भी है जो प्रात: 5.45 से प्रारंभ होकर रात्रि 2.26 बजे तक रहेगा।

 'अपरा' अर्थात अपार फल देने वाली। अपरा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। यह भाग्योदय करके अपार धन-संपत्ति और सुख-वैभव भी प्रदान करती है। अपरा एकादशी व्रत करने, इसकी कथा सुनने या पढ़ने से मनुष्य को समस्त भौतिक संपदा प्राप्त हो जाती है। अपरा एकादशी व्रत की विधि अपरा एकादशी व्रत करने से पूर्व दशमी के दिन से व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए सात्विक विचारों का पालन करना होता है। एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। व्रत का संकल्प लें और पूरे दिन निराहार रहें। यदि करना चाहें तो खरबूजे का फलाहार कर सकते हैं। भगवान विष्णु की पूजा में तुलसीदल, पुष्प, चंदन, धूप-दीप का प्रयोग करें। मखाने की खीर बनाएं और भोग के रूप में विष्णु भगवान को अर्पित करें। पूजा के बाद खीर का प्रसाद बांट दें। रात्रि में भगवान विष्णु के भजन करते हुए जागरण करें। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करें। अपरा एकादशी व्रत कथा प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था। 

एक दिन मौका पाकर उसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे शव को गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल के पेड़ पर निवास करने लगी। वह आत्मा उस मार्ग से गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति को परेशान करती थी। एक दिन एक ऋ षि उस रास्ते से गुजर रहे थे। प्रेत आत्मा उन्हें भी परेशान करने के उद्देश्य से पेड़ से नीचे उतरकर आई। ऋ षि ने अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जान लिया। ऋ षि ने प्रेतात्मा को परलोक विद्या का उपदेश दिया और राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा। द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया। 


 एकादशी तिथि का समय एकादशी तिथि प्रारंभ 5 जून प्रात: 4.09 बजे से एकादशी तिथि पूर्ण 6 जून को प्रात: 6.21 बजे तक चूंकि यह एकादशी 5 जून को सूर्योदय पूर्व से ही प्रारंभ होकर 6 जून को सूर्योदय के बाद तक रहेगी इसलिए यह अहोरात्री एकादशी होने के कारण व्रत 6 जून को करना श्रेयस्कर रहेगा। 

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